अमित शाह ने तमिलनाडु सरकार को घेरा, बोले- मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई तमिल भाषा में शुरू करने के लिए उठाएं ठोस कदम
अरक्कोनम: तमिलनाडु में भाषा और शिक्षा नीति को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि पिछले दो वर्षों में कई अनुरोधों के बावजूद डीएमके सरकार ने मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को तमिल भाषा में शुरू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उन्होंने यह टिप्पणी तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार और केंद्र के बीच तीन-भाषा नीति और हिंदी थोपने के आरोपों पर चल रहे विवाद के बीच की। अमित शाह ने शुक्रवार को तमिलनाडु के रानीपेट जिले के अरक्कोनम में सीआईएसएफ के 56वें स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया, जहां उन्होंने विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया और सीआईएसएफ की पत्रिका ‘सेंटिनल’ का विमोचन किया। इस दौरान उन्होंने परेड की भी समीक्षा की और भाषण देते हुए डीएमके सरकार पर तीखा हमला किया।
अमित शाह ने कहा कि अब तक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की भर्ती परीक्षाओं में मातृभाषा के लिए कोई विशेष स्थान नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह निर्णय लिया है कि अब देशभर के युवा, तमिल समेत आठ भाषाओं में CAPF परीक्षा दे सकेंगे। उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से आग्रह किया कि वे जल्द से जल्द तमिल भाषा में मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम शुरू करने की दिशा में कदम उठाएं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इससे न केवल मातृभाषा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि तमिल में परीक्षा देने वाले युवाओं को भी समान अवसर प्राप्त होंगे। गृह मंत्री ने यह भी कहा कि वह पिछले दो वर्षों से इस विषय पर लगातार आग्रह कर रहे हैं, लेकिन अभी तक डीएमके सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
इससे पहले, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर हमला बोलते हुए कहा कि केंद्र सरकार तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का प्रयास कर रही है, लेकिन इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को जब तमिलनाडु सरकार ने खारिज कर दिया है, तो फिर इस विषय को दोबारा उठाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि “तमिलनाडु आत्मसमर्पण नहीं करेगा और इसे ब्लैकमेल नहीं किया जा सकता।” उन्होंने केंद्र सरकार पर तमिलनाडु की संस्कृति, भाषा और शिक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि डीएमके हमेशा तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए अग्रणी भूमिका में रही है।
स्टालिन ने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि तमिलनाडु ब्रिटिश उपनिवेशवाद के बाद हिंदी उपनिवेशवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि योजनाओं के नामकरण से लेकर केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों तक, हर जगह हिंदी को थोपने की कोशिश की जा रही है, जिससे गैर-हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को असहज महसूस हो रहा है। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि जिन लोगों ने तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश की, वे या तो हार गए या बाद में अपना रुख बदलकर डीएमके के साथ आ गए।
इस मुद्दे पर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच जुबानी जंग और राजनीतिक विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। डीएमके और अन्य क्षेत्रीय दलों का मानना है कि केंद्र सरकार हिंदी को अनिवार्य बनाकर गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भाषाई पहचान को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। वहीं, भाजपा का कहना है कि मातृभाषा में उच्च शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है और डीएमके सरकार इसमें विफल रही है।
यह विवाद न केवल तमिलनाडु बल्कि अन्य गैर-हिंदी भाषी राज्यों में भी राजनीतिक रूप से अहम बन सकता है, क्योंकि यह क्षेत्रीय भाषाओं की रक्षा और भाषा आधारित पहचान की राजनीति से जुड़ा हुआ है। आगामी लोकसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा और भी गर्माने की संभावना है, क्योंकि डीएमके इसे तमिल पहचान से जोड़कर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है, जबकि भाजपा इसे मातृभाषा में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के रूप में प्रस्तुत कर रही है।