नक्सलवाद से मुक्त होते बस्तर में नया खतरा नस्लवाद
धर्मांतरण से बढ़ता तनाव असंतोष आक्रोश और हिंसा
सरकार बनते ही 60 दिनों में आने वाले सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून का अब तक अता पता नहीं
तीन चर्च जलाए गए,एएसपी समेत 25 घायल 9 गंभीर
कहीं ये विकास की ओर बढ़ रहे बस्तर को अशांत करने की साजिश तो नहीं,प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
कांकेर के आमाबेड़ा इलाके की ग्राम पंचायत बड़ेतेवड़ा में धर्मांतरित सरपंच के पिता के शव को गांव के खेत में दफनाने से उपजा विवाद कल हिंसक हो गया।लोगों ने सरपंच के घर के प्राथना भवन और तीन चर्च में तोड़फोड़ कर आग लगा दी।दोनों पक्षों में जमकर लाठी डंडे/पत्थर चले।25 लोग घायल बताए जा रहे है जिनमें से 9 लोगों को कांकेर रेफर किया गया है।
सोमवार से चल रहे शव दफनाने के विवाद ने कल हिंसक रूप ले लिया था।हिंसा में अंतागढ़ एएसपी समेत दो जवान भी बुरी तरह घायल हुए है।दफनाए हुए शव को निकाल कर बाहर भेजा गया।गांव में भारी फोर्स तैनात की गई है।
ये पहला मामला नहीं है शव दफनाने को लेकर जब विवाद हुआ है।पिछली भूपेश सरकार में भी ऐसे मामले सामने आए थे तब विपक्ष में रही भाजपा इस पर जमकर हंगामा मचाती रही और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानों बनाने की घोषणा भी करती रही।
धर्मांतरण चुनावी मुद्दा भी रहा और सरकार बनते ही घोषणा भी हुई कि 60 दिनों के भीतर सख्त धर्मांतरण कानून लाया जाएगा।अब दो साल पूरे हो चुके है धर्मांतरण कानून का अता पता नहीं है।
कांकेर समेत पूरे बस्तर में धर्मांतरण का विवाद अब गंभीर रूप लेता जा रहा है।सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि बस्तर क्षेत्र में धर्मांतरण ने राज्य बनने के बाद ही तेजी पकड़ी और जैसे जैसे बस्तर नक्सलवाद की गिरफ्त से मुक्त होते जा रहा है नक्सलवाद /धर्मांतरण की गिरफ्त बस्तर पर और मजबूत होती जा रही है।
इस लिहाज से देखे तो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बस्तर को शांति और विकास की ओर जाने से रोकने की सुनियोजित साजिश तेज होती जा रही है और ऐसे में प्रशासनिक और राजनैतिक लापरवाही बस्तर को फिर संघर्ष के दंगल में धकेलती नजर आ रही है।
