बेवकूफी और ईमानदारी दोनों का नमूना एक,स्टेडियम करार,एक साल का किराया 1.5 करोड़ रु और एक दिन की कमाई 9.6 करोड़
बेवकूफी और ईमानदारी दोनों का नमूना एक,स्टेडियम करार,एक साल का किराया 1.5 करोड़ रु और एक दिन की कमाई 9.6 करोड़,
सैकड़ों करोड़ों की ब्रॉडकास्टिंग,और लोकल स्पॉन्सरशिप फीस में ठेंगा।
छत्तीसगढ़ सरकार जानबूझकर बुरी तरह हारी और क्रिकेट संघ की धमाकेदार जीत
अनॉफिशियल कॉम्पलीमेंट्री टिकट्स का कोई हिसाब किताब नहीं,स्टेडियम में क्षमता से ज्यादा लोग नहीं होते तो खड़े खड़े मैच देखने की नौबत क्यों आती?
भारत के दूसरे और दुनिया के चौथे बड़े स्टेडियम को छत्तीसगढ़ सरकार के क्रिकेट संघ को किराए पर देने के परिणाम सामने आ गए है,एक साल के किराए से 6 गुना कमाई तो एक दिन में हो गई है।8 करोड़ रु टिकिट से और मैच होस्टिंग फीस 1.6 करोड़ रु,यानी 9.6 करोड़।अगर एकाध मैच और मिल गए तो क्रिकेट संघ के वारे न्यारे हो जाएंगे।
इस मैच के आधिकारिक आंकड़े देखे तो 46 हजार ऑनलाइन टिकट बिकी,वो भी कब किसी को पता नहीं कि बुकिंग शुरू होती ही खत्म हो गई थी। ऑफलाइन टिकिट कहा बिकी,किसने खरीदी किसी को पता नहीं,तो फिर स्टेडियम में 54500 दर्शक कैसे पहुंच गए?
फिर जब हर स्टैंड में क्षमता से ज्यादा दर्शक पहुंचे और स्टेडियम खचाखच भर जाने के बाद लोगों को खड़े खड़े मैच देखना पड़ा तो स्टेडियम की क्षमता से 10 प्रतिशत कम दर्शक आने के आधिकारिक दावे पर कैसे विश्वास किया जाए?
सबसे बड़ी गड़बड़ी तो कॉम्पलीमेंट्री टिकिट के रूप में सामने आई है?कॉम्पलीमेंट्री टिकिट कितनी छापी गई?कितनी बांटी गई?इसका कोई हिसाब ही नहीं सामने आया?फिर हर टिकिट पर सीट नंबर अंकित होता है कि टिकिट धारक को पता रहे कि उसे बैठना कहां है,मगर कॉम्पलीमेंट्री टिकिट पर कोई नंबर क्यों नहीं था?क्या स्टेडियम में खड़े लोग कॉम्पलीमेंट्री टिकिट धारक थे?
सबसे बड़ी बात तो ये है एक मैच की सिर्फ गेट फीस यानि टिकिट से ही संघ को 8 करोड़ और होस्टिंग फीस के रूप में 1.6 करोड़ रु मिल गए,सरकार को इसमें से सिर्फ बीस लाख मिलेंगे?
जबकि ब्रॉडकास्टिंग फीस और स्पॉन्सरशिप और लोकल स्पॉन्सरशिप में रेवेन्यू शेयरिंग का कोई उल्लेख ही नहीं किया गया है,जो मैच की असली कमाई यानी मलाई होती है।और छाछ का बंटवारा भी ऐसा की पी पी वन क्लास का बच्चा भी नहीं मानेगा।वो एक चाकलेट लेकर 6 चॉकलेट कभी नहीं देगा,पर हमारी सरकार के अति विद्वान अति विशिष्ठ अफसरों की फौज ऐसा फैसला करने पर क्यों राजी हो गई ये समझ से परे है?
क्या हमारी सरकार के रुपयों का दुरुपयोग नहीं है?क्या इसके दोषी जिम्मेदार लोगो के खिलाफ करवाई नहीं होनी चाहिए?क्या ये सरकार को घाटे में रखकर क्रिकेट संघ को फायदा पहुंचाने वाला सौदा नहीं है?क्या आर्थिक अपराध नहीं है?
सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो कांग्रेस की खामोशी है?
सवाल तो और भी बहुत से बाकी है,पर फिर कभी,आज के लिए इतना ही काफी है,देखे क्या सफाई आती है तो?
अनिल पुसदकर की कलम से
