ट्रंप-जेलेंस्की विवाद के बीच चीन की नई कूटनीतिक चाल, यूरोपीय संघ से मजबूत संबंध बनाने की कोशिश
बीजिंग: यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच बढ़ती दूरी का फायदा उठाने के लिए चीन ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। चीन ने अब यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाने की योजना बनाई है। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच एक बैठक में तीखी बहस हुई थी, जिसके बाद यूरोपीय संघ के नेताओं ने यूक्रेन के प्रति एकजुटता जताई। इस घटनाक्रम का फायदा उठाकर चीन यूरोप के साथ अपने व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों को और गहरा करना चाहता है।
बीजिंग में चीन की संसद ‘नेशनल पीपुल्स कांग्रेस’ (एनपीसी) के प्रवक्ता लू किनजियान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीन और यूरोप के बीच कोई मौलिक हितों का टकराव नहीं है, बल्कि दोनों क्षेत्र एक-दूसरे की तरक्की में सहायक हैं। उनका कहना था कि बीते पचास वर्षों में यह साबित हुआ है कि चीन और यूरोप के बीच कोई भू-राजनीतिक संघर्ष नहीं है, बल्कि वे आर्थिक और व्यापारिक रूप से लाभकारी भागीदार हैं। इसी कड़ी में, चीन ने यूरोपीय संघ के साथ अपने रिश्तों को और गहरा करने की योजना बनाई है, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के व्यापार के क्षेत्र में। चीन यूरोपीय बाजार को अपने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से सक्षम इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य मानता है। हालांकि, यूरोपीय संघ ने अपने घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए चीनी ई-वाहनों पर भारी शुल्क लगाया हुआ है, जिससे दोनों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ा है।
इस बीच, चीन ने ट्रंप-जेलेंस्की विवाद को लेकर अमेरिकी और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते मतभेदों का बखूबी अध्ययन किया है। अमेरिकी और यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक रिश्तों में आ रहे बदलावों को भुनाने की कोशिश में चीन अपने हितों को साधने में जुट गया है। ट्रंप और जेलेंस्की की बैठक के दौरान हुई तीखी बहस के बाद चीन के सरकारी मीडिया ने इस विवाद से जुड़े वीडियो को बड़े पैमाने पर प्रसारित किया। चीन को उम्मीद है कि यूरोपीय संघ की अमेरिका से बढ़ती असहमति उसके लिए नए अवसर लेकर आएगी।
हालांकि, यह स्थिति चीन के लिए एक जटिल चुनौती भी पेश कर रही है। ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच बढ़ती नजदीकियों को लेकर बीजिंग में चिंता बनी हुई है। ट्रंप यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए पुतिन के साथ संवाद बढ़ा रहे हैं, जो कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी सहयोगी हैं। पुतिन और शी वर्षों से अमेरिका और उसके सहयोगियों की नीतियों का सामना करने के लिए मजबूत साझेदारी बनाए हुए हैं। लेकिन अब, अगर ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं और रूस के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करते हैं, तो इससे चीन के हितों पर असर पड़ सकता है।
1 मार्च को पुतिन ने अपने शीर्ष सुरक्षा अधिकारी सर्गेई शोइगु को बीजिंग भेजा था, ताकि वह शी जिनपिंग को यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए अमेरिका के साथ चल रही वार्ताओं के बारे में जानकारी दे सकें। इससे यह स्पष्ट होता है कि रूस और चीन की साझेदारी तो मजबूत है, लेकिन ट्रंप और पुतिन की बढ़ती नजदीकी चीन के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकती है।
चीन फिलहाल यूरोप के साथ अपने संबंधों को विस्तार देने और अमेरिका की विदेश नीति में हो रहे बदलावों का लाभ उठाने की कोशिश में जुटा हुआ है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन की यह रणनीति उसे यूरोपीय संघ के करीब लाने में कितनी सफल होती है और ट्रंप-पुतिन गठजोड़ इस पर किस तरह का प्रभाव डालता है।