नारायणपुर में नक्सलवाद को बड़ा झटका: 29 माओवादियों ने छोड़ दी हिंसा, मुख्यधारा में लौटने का लिया संकल्प

नारायणपुर :  छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में नक्सल उन्मूलन अभियान के तहत एक बड़ी सफलता सामने आई है। पहली बार कुतुल एरिया कमेटी से जुड़े 29 माओवादियों ने बिना किसी हथियार के आत्मसमर्पण कर दिया है। यह आत्मसमर्पण इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि अब तक माओवादी आत्मसमर्पण के दौरान अपने हथियार डालते रहे हैं, लेकिन इस बार विचारधारा से मोहभंग होने के कारण उन्होंने हिंसा छोड़कर शांति का मार्ग चुना।

सरकारी पुनर्वास नीति और विकास कार्यों ने बदली माओवादियों की मानसिकता

सरकार द्वारा चलाई जा रही पुनर्वास नीति, सुदूर इलाकों में तेज़ी से हो रहे विकास कार्य और स्थानीय आदिवासियों तक सरकारी योजनाओं की पहुँच ने माओवादियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया है। नारायणपुर और अबूझमाड़ क्षेत्रों में लगातार सड़कें बनाई जा रही हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसी सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, जिससे आम जनता के साथ-साथ माओवादी संगठनों के निचले स्तर के सदस्य भी अब मुख्यधारा से जुड़ने को लेकर जागरूक हो रहे हैं।

संगठन के भीतर गुटबाजी और भेदभाव बना आत्मसमर्पण का बड़ा कारण

सरकारी प्रयासों के अलावा, माओवादी संगठनों के अंदरूनी मतभेद, बढ़ती गुटबाजी और बाहरी माओवादियों द्वारा किए जा रहे भेदभाव ने भी आत्मसमर्पण के इस फैसले को प्रभावित किया। स्थानीय कैडर महसूस कर रहे थे कि उनका उपयोग केवल बलिदान देने के लिए किया जा रहा है, जबकि बाहरी बड़े नेता सुरक्षित जगहों पर रहकर अपना हित साध रहे हैं। ऐसे में नाराज होकर 29 माओवादी नेताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया।

आत्मसमर्पण करने वालों में कौन-कौन शामिल?

इस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण में कुल 29 माओवादी शामिल हैं, जिनमें 22 पुरुष और 7 महिलाएँ हैं। इनमें से कुछ जनताना सरकार के सदस्य, माओवादी मिलिशिया के सक्रिय कार्यकर्ता, सीएनएम (क्रांतिकारी किसान कमेटी) के सदस्य, कृषि शाखा के कार्यकर्ता और पंचायत सरकार अध्यक्ष भी हैं। यह स्पष्ट है कि माओवाद की विचारधारा अब खुद अपने ही कार्यकर्ताओं के लिए बोझ बनती जा रही है, जिससे वे हिंसा का रास्ता छोड़कर सरकार के पुनर्वास कार्यक्रम से जुड़ना चाहते हैं।

सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी सफलता

विशेषज्ञ इस आत्मसमर्पण को सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी सफलता मान रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा ‘माड़ बचाओ अभियान’ जैसे रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, जिसके तहत आदिवासी क्षेत्रों में जनकल्याणकारी योजनाएं लागू की गईं और माओवादियों के लिए पुनर्वास के अवसर खोले गए। इसी का नतीजा है कि अब नक्सल संगठन के अंदर निराशा बढ़ रही है और बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण हो रहे हैं।

भविष्य की उम्मीदें: क्या खत्म होने वाला है नक्सलवाद?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार इसी तरह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को जारी रखती है और युवाओं के लिए शिक्षा व रोजगार के अवसर बढ़ाती है, तो आने वाले वर्षों में नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त हो सकता है। यह आत्मसमर्पण एक सकारात्मक संकेत है कि अब लोग हिंसा के बजाय शांति के मार्ग पर लौटने को तैयार हैं, जिससे छत्तीसगढ़ में स्थायी शांति और विकास की संभावनाएँ और भी मजबूत हो रही हैं।