जंगल कटाई विवाद में बुरहानपुर कलेक्टर पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: आदिवासी संगठन को न्याय और 50 हजार रुपये का मुआवजा

बुरहानपुर :  मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में जंगल कटाई को लेकर एक लंबे समय से विवाद चल रहा था, जिसके केंद्र में आदिवासी समुदाय और जिला प्रशासन के बीच तनातनी थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बुरहानपुर के कलेक्टर पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है और यह राशि याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में देने का निर्देश दिया है।

मामले का पृष्ठभूमि और विवाद का कारण

मामला बीते वर्ष का है, जब बुरहानपुर जिले के जंगलों में अवैध कटाई की घटनाएं तेजी से बढ़ रही थीं। इस अवैध गतिविधि का विरोध करते हुए आदिवासी समुदाय ने जागृत आदिवासी संगठन के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन छेड़ा। आदिवासियों ने जंगल कटाई रोकने की मांग करते हुए कलेक्टर कार्यालय का घेराव भी किया था।

कलेक्टर की विवादास्पद कार्रवाई

हालांकि, प्रशासन ने स्थिति को ठीक से संभालने के बजाय उल्टा आदिवासियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनके प्रमुख कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोप लगाए। जागृत आदिवासी संगठन के कार्यकर्ताओं पर जिले से निष्कासन (जिला बदर) के आदेश जारी कर दिए गए। यह कदम आदिवासी समाज के बीच रोष का कारण बना।

कलेक्टर की इस कार्रवाई को अनुचित मानते हुए आदिवासी संगठन के एक युवा कार्यकर्ता अंतराम आवासे ने हाईकोर्ट में न्याय की गुहार लगाई। उन्होंने तर्क दिया कि कलेक्टर ने वन कटाई में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय आंदोलन कर रहे निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाया।

हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को गलत ठहराया। अदालत ने यह माना कि कलेक्टर ने शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए निर्दोष आदिवासियों के खिलाफ अनुचित कार्रवाई की। न्यायालय ने आदेश दिया कि अंतराम आवासे को 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाए और प्रशासन को इस बात की सुनिश्चितता करनी होगी कि भविष्य में किसी समुदाय के साथ ऐसी अन्यायपूर्ण कार्रवाई न हो।

आदिवासी संगठन की प्रतिक्रिया

हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए जागृत आदिवासी संगठन के सदस्य अंतराम आवासे ने कहा, “हमें पूरी उम्मीद थी कि न्यायालय हमारे साथ हुए अन्याय को सुधारेगा। यह फैसला न केवल हमारे लिए न्याय की जीत है बल्कि उन तमाम संघर्षशील आदिवासी समुदायों के लिए प्रेरणा भी है, जो अपने हक और जंगलों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।”

घटनाक्रम का सामाजिक और कानूनी महत्व

हाईकोर्ट के इस आदेश ने जंगलों और आदिवासी अधिकारों से जुड़े मुद्दों को एक नई रोशनी दी है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि प्रशासन अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता और किसी समुदाय विशेष के साथ अन्यायपूर्ण रवैया नहीं अपना सकता।

आगे की राह और न्याय की उम्मीद

इस पूरे मामले ने प्रशासन और जनसंगठनों के बीच संवाद की कमी को उजागर किया है। अदालत का यह फैसला न केवल बुरहानपुर में बल्कि पूरे राज्य में यह संदेश देता है कि समुदाय के अधिकार और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि अगर लोग संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें और न्यायपालिका पर भरोसा रखें, तो उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा। अदालत का यह फैसला आदिवासी समाज के हक और उनकी आवाज की जीत के रूप में याद रखा जाएगा।