“संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 2025: पाकिस्तान की सदस्यता से उभरते नए रणनीतिक समीकरण”
संयुक्त राष्ट्र : वर्ष 2025 की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों में बदलाव होने जा रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत कुछ गैर-स्थायी सदस्यों की एंट्री होगी, जिससे वैश्विक शक्ति संतुलन और क्षेत्रीय कूटनीति पर गहरा असर पड़ सकता है।
जून 2023 में अस्थायी सदस्य के रूप में चुने जाने के बाद, पाकिस्तान अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र की एक सीट पर जापान का स्थान लेगा। अगले दो वर्षों तक इस्लामाबाद का उद्देश्य क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर अपनी नीति को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। इस सीट पर आसीन होकर, पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा प्रतिबंध समितियों में वर्चुअल वीटो शक्ति प्राप्त होगी, जिसका इस्तेमाल वह आतंकवाद से जुड़े विवादास्पद मामलों में कर सकता है।
आतंकवाद पर पाकिस्तान की भूमिका
इस नए पद पर, पाकिस्तान अब 26/11 मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड जैसे आतंकवादियों के खिलाफ प्रतिबंधों को रोकने के लिए चीन पर निर्भर नहीं रहेगा। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों के पास ही निर्णयों पर औपचारिक वीटो शक्ति होती है, प्रतिबंध समितियों की कार्यप्रणाली, जो सर्वसम्मति पर आधारित होती है, गैर-स्थायी सदस्यों को भी अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति प्रदान करती है।
इसके बावजूद, प्रतिबंध समितियों के संचालन में पारदर्शिता की कमी की आलोचना हुई है। भारत लंबे समय से इन समितियों की प्रक्रियाओं को “अस्पष्ट” और “निराधार” बताते हुए, निर्णयों के औचित्य को स्पष्ट करने की मांग कर रहा है।
पाकिस्तान और कश्मीर मुद्दा
सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को कश्मीर के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने का मंच मिलेगा, हालांकि, अतीत में उसकी यह कोशिशें वैश्विक समर्थन जुटाने में विफल रही हैं। इस्लामाबाद कश्मीर को फिलिस्तीन समस्या के साथ जोड़ने की कोशिश करता रहा है, लेकिन अब तक अन्य देशों को इस narrative से सहमत करने में सफल नहीं हुआ। पाकिस्तान के लिए यह नया पद प्रचार के मंच के रूप में उपयोग किया जा सकता है, खासतौर पर जब वह जुलाई 2025 में परिषद की अध्यक्षता करेगा। इस दौरान, पाकिस्तान उच्च-स्तरीय कार्यक्रमों और बहस का आयोजन कर सकता है, जिसका उद्देश्य भारत पर दुष्प्रचार करना हो सकता है।
एशियाई क्षेत्र में शक्ति संतुलन में बदलाव
जापान के स्थान पर पाकिस्तान की एंट्री से सुरक्षा परिषद में संतुलन बदल सकता है। चीन, रूस, और पाकिस्तान के त्रिकोणीय संबंधों के कारण विभिन्न मुद्दों पर नए समीकरण बन सकते हैं। दक्षिण कोरिया, जो पश्चिमी समर्थक है, के मुकाबले पाकिस्तान का दृष्टिकोण अलग होगा। इसके साथ ही, फिलिस्तीन के मुद्दे पर पाकिस्तान का मजबूत रुख और आतंकवाद को लेकर उसका दोहरा मापदंड सुरक्षा परिषद की बहस को और जटिल बना सकता है।
वैश्विक समर्थन प्राप्त करने की प्रक्रिया
सुरक्षा परिषद की सीट के लिए इस्लामाबाद ने व्यापक कूटनीति का सहारा लिया। चीन, सऊदी अरब, ईरान, मलेशिया, यूएई, और लेबनान समेत करीब 20 देशों ने इसके पक्ष में समर्थन दिया। महासभा में हुए चुनाव में पाकिस्तान को 182 मत मिले, जो कि व्यापक समर्थन का प्रतीक है।
आशंका और संभावित चुनौतियां
आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान का विरोधाभासी रवैया इस नई भूमिका में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर सकता है। अपने अंदरूनी मुद्दों जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकी हमलों की आलोचना करते हुए, इस्लामाबाद भारत और अन्य पड़ोसी देशों के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है। अब, उसकी भूमिका प्रतिबंध समितियों और सुरक्षा परिषद में कैसी होती है, यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अहम होगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पाकिस्तान अपने नये पद का उपयोग कैसे करता है क्या वह इसे विश्व शांति और स्थिरता के उद्देश्य से उपयोग करता है, या केवल अपने देश-विशेष के एजेंडे को बढ़ावा देने का साधन बनाता है।