“अश्वमेघ यज्ञ महोत्सव: मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने किया सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के उत्थान का आह्वान”
सारंगढ़-बिलाईगढ़: सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के ग्राम टिमरलगा में आयोजित अश्वमेघ यज्ञ महोत्सव ने क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को एक नई ऊंचाई प्रदान की। इस भव्य आयोजन में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने विशेष रूप से शामिल होकर इसकी शोभा बढ़ाई। उन्होंने इस अनुष्ठान की प्रशंसा करते हुए इसे समाज के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान का एक महत्वपूर्ण कदम बताया। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यज्ञ-अनुष्ठान केवल स्थानीय समुदाय को नहीं, बल्कि देश और प्रदेश के व्यापक कल्याण में योगदान करते हैं। उन्होंने ग्रामवासियों के इस प्रेरणादायक प्रयास की सराहना करते हुए इसे सनातन धर्म की समृद्ध परंपराओं को सहेजने का प्रयास बताया।
मुख्यमंत्री साय ने श्रद्धालुओं से कहा, “प्रभु श्रीराम की कृपा हम सभी पर सदैव बनी रहे और ऐसे आयोजन हमारी संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सहेजने का माध्यम बनें।” उन्होंने आयोजन समिति और क्षेत्रवासियों को उनकी सामूहिक निष्ठा और प्रयासों के लिए बधाई दी। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे आयोजनों से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ा जा सकता है और भारतीय मूल्यों की गहरी समझ विकसित की जा सकती है।
महोत्सव में सांसद राधेश्याम राठिया, विधायक कृष्णकुमार राय और समाजसेवी जगन्नाथ पाणिग्रही सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। उन्होंने यज्ञ के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे धार्मिक जागरूकता और सामुदायिक एकता का प्रतीक बताया। सभी वक्ताओं ने इसे क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने वाला आयोजन माना।
यज्ञ में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने अपने विश्वास और श्रद्धा के साथ कार्यक्रम को सफल बनाया। पर्वतदान (अन्नदान) जैसी गतिविधियों ने इस आयोजन को और भी खास बना दिया, जिसमें सैकड़ों लोगों ने सामूहिक रूप से अन्न का दान किया। इस अनुष्ठान का उद्देश्य केवल धार्मिक रीतियों का पालन करना नहीं था, बल्कि सामाजिक सद्भाव, सेवा और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देना भी था।
अश्वमेघ यज्ञ, जो प्राचीन भारतीय धार्मिक परंपरा का प्रतीक है, ने लोगों को धर्म, आस्था और संस्कृति के प्रति जागरूक करने का काम किया। यह आयोजन क्षेत्रवासियों की सामूहिक प्रतिबद्धता और उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को दर्शाता है। इस प्रकार के आयोजन न केवल धर्म के प्रति आस्था को बढ़ावा देते हैं, बल्कि समाज में आपसी सहयोग, एकता और सामूहिक प्रगति का संदेश भी देते हैं।
समग्र रूप से यह महोत्सव आध्यात्मिकता, सामाजिक समर्पण और सांस्कृतिक उत्थान का प्रतीक बनकर उभरा और क्षेत्र में सनातन परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का संदेश दिया। ऐसे आयोजनों से न केवल भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को संजोया जा सकता है, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भी प्रदर्शित किया जा सकता है।