पाकिस्तान-अफगानिस्तान रिश्तों में तनाव: आतंकवाद और शरणार्थी मुद्दे बन रहे हैं प्रमुख विवाद

नई दिल्ली:  इस्लामाबाद और काबुल के बीच रिश्ते इस समय तनावपूर्ण हैं, और यह तनाव हाल ही में पाकिस्तान की एक एयर स्ट्राइक में अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में हुई आतंकवादी हमले की घटना के बाद चरम पर पहुंच गया है। तालिबान द्वारा की गई इस एयरस्ट्राइक में 46 लोगों की मौत हो गई, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। तालिबान ने इस पर कड़ा विरोध करते हुए इस्लामाबाद को चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान की क्षेत्रीय संप्रभुता एक लाल रेखा है, जिसे पार नहीं किया जा सकता। हालांकि, पाकिस्तान ने अभी तक इस हमले पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन स्थिति और जटिल हो सकती है, क्योंकि यह संघर्ष एक व्यापक मुद्दे से जुड़ा हुआ है।

तालिबान शासन और पाकिस्तान के बीच कड़वाहट की मुख्य वजह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है, जो पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है। पाकिस्तान ने कई बार आरोप लगाया है कि अफगानिस्तान की सरकार ने टीटीपी को पनाह दी है और उनकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। पाकिस्तान का दावा है कि यह आतंकवादी संगठन पाकिस्तानी सीमा में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए अफगान सीमा का इस्तेमाल करता है। हालांकि, काबुल इन आरोपों को नकारता रहा है और उनका कहना है कि अफगान धरती का इस्तेमाल किसी भी आतंकवादी गतिविधि के लिए नहीं होने दिया जाएगा।

हाल ही में, टीटीपी के लड़ाकों ने पाकिस्तान के दक्षिणी वज़ीरिस्तान में हुए हमले में 16 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली थी। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ब्रीफिंग के दौरान, पाकिस्तान के राजनयिक ने टीटीपी को अफगानिस्तान का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन बताते हुए आरोप लगाया कि यह संगठन पाकिस्तान के लिए एक गंभीर खतरा है। उनका कहना था कि टीटीपी के पास 6,000 से ज्यादा आतंकवादी हैं, जो पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए निरंतर खतरा बने हुए हैं।

इसके साथ ही, पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को निर्वासित करने का अभियान भी तेज कर दिया है। नवंबर 2023 में लगभग 5,41,000 अफगान शरणार्थियों को बाहर निकाला गया था, और पाकिस्तान ने भविष्य में 800,000 से अधिक अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर निकालने की योजना बनाई है। पाकिस्तान ने यह कदम अपनी सुरक्षा चिंताओं और संघर्षरत अर्थव्यवस्था के कारण उठाया है।

पाकिस्तान और तालिबान के बीच ऐतिहासिक संबंधों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तालिबान की 2021 में काबुल में सत्ता पुनःस्थापना के बाद, पाकिस्तान को यह विश्वास था कि उनके बीच पुराने अच्छे संबंध फिर से शुरू होंगे। यह अहसास पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के तत्कालीन प्रमुख जनरल फैज़ हमीद के बयान से भी जाहिर हुआ था, जब उन्होंने काबुल की सत्ता पर तालिबान के कब्जे का जश्न मनाते हुए कहा था कि अब सब ठीक हो जाएगा। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ, और तालिबान ने पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम कर दी, इसके बजाय उसने चीन, रूस, ईरान और कुछ अन्य मध्य एशियाई देशों से रिश्ते सुधारने का फैसला किया है।

इस वक्त के हालात और घटनाओं से यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते और तनावपूर्ण हो सकते हैं। पाकिस्तान के आतंकवादियों को समर्थन देने के आरोप और अफगान शरणार्थियों का निष्कासन इन दोनों देशों के रिश्तों को और जटिल बना सकते हैं। यह संघर्ष न केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।