साय कैबिनेट विस्तार की हलचल और नगरीय निकाय चुनाव से पहले सियासी घमासान तेज
रायपुर: उपचुनाव के नतीजे सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। अब नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है, जिससे साय कैबिनेट के विस्तार की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। कैबिनेट में फिलहाल दो मंत्री पद खाली हैं, और इन पदों को भरने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में गहन चर्चा और सियासी बयानबाजी हो रही है।
मंत्री पदों की रेस में शामिल प्रमुख दावेदार
साय कैबिनेट में खाली पड़े मंत्री पदों पर नियुक्तियों को लेकर अलग-अलग वर्गों, क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों पर विचार किया जा रहा है। चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव से पहले इन पदों को भरकर पार्टी विभिन्न समुदायों और संभागों का विश्वास जीतने का प्रयास करेगी।
रायपुर का प्रतिनिधित्व निश्चित
निगम चुनाव के मद्देनजर रायपुर से एक मंत्री बनाए जाने की संभावना प्रबल है, क्योंकि वर्तमान कैबिनेट में रायपुर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। पिछले कार्यकाल में रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल को मंत्री बनाया गया था, लेकिन अब उनके सांसद बनने के बाद यह पद खाली है। बृजमोहन के करीबी सुनील सोनी, जो ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, मंत्री पद की रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं।
अन्य प्रमुख नाम
राजेश मूणत, जो रायपुर पश्चिम से विधायक हैं, अपनी तेज-तर्रार छवि और पूर्व मंत्री के अनुभव के चलते मंत्री पद के दावेदारों में अग्रणी हैं। ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा का नाम भी प्रमुखता से चर्चा में है। उपचुनाव के दौरान ब्राह्मण समाज ने टिकट की मांग उठाई थी, जिसे अनदेखा कर सुनील सोनी को मौका दिया गया। ऐसे में मंत्री पद देकर इस वर्ग को संतोष देने की कोशिश की जा सकती है।
संभावित नामों में संतुलन का प्रयास
अगर रायपुर से मंत्री बनने पर सहमति नहीं बनती, तो ग्रामीण क्षेत्र के विधायक मोतीलाल साहू को मौका मिल सकता है। वहीं, दूसरे पद के लिए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव, गजेन्द्र यादव, और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं।
क्षेत्रीय और जातीय समीकरण
वर्तमान कैबिनेट में सरगुजा और बिलासपुर संभाग का दबदबा है, जहां से क्रमशः चार और तीन मंत्री शामिल हैं। दुर्ग से दो और बस्तर से केवल एक मंत्री होने के कारण बस्तर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग भी हो रही है। जातीय समीकरण की बात करें तो मुख्यमंत्री समेत तीन एसटी, एक एससी और छह ओबीसी मंत्री हैं। ऐसे में ब्राह्मण या जैन समाज के उम्मीदवार को प्राथमिकता दी जा सकती है।
विपक्ष की प्रतिक्रियाएं और राजनीतिक माहौल
जहां सत्ता पक्ष इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इसे उनका विशेषाधिकार बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस समेत विपक्षी दल इसे लेकर सरकार पर कटाक्ष करने में पीछे नहीं हैं। कांग्रेस ने इसे “आंतरिक खींचतान” करार दिया है।
कैबिनेट विस्तार के संभावित फायदे
यदि कैबिनेट विस्तार निकाय चुनाव से पहले होता है, तो इससे बीजेपी को नगरीय निकाय चुनाव में लाभ मिल सकता है। नया मंत्रिमंडल बनाने से पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उत्साह बढ़ेगा और अलग-अलग वर्गों का समर्थन भी हासिल होगा। रायपुर जैसे बड़े शहर से मंत्री बनाए जाने पर स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ और मजबूत हो सकती है।
अंतिम फैसला कब?
साय मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच फैसला पार्टी संगठन और मुख्यमंत्री के हाथ में है। हालांकि, यह साफ है कि निकाय चुनाव को देखते हुए कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक संतुलन साधना पार्टी के लिए न केवल आवश्यक है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से अनिवार्य भी है। अब देखने की बात होगी कि मंत्री पद की लॉटरी आखिर किसके नाम पर निकलती है और इसका राज्य की राजनीति और बीजेपी की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है।