“सिद्धारमैया ने हिंदी थोपने और कर भेदभाव पर केंद्र को किया आलोचित”

मांड्या:  कर्नाटका के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को 87वें कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन पर केंद्रीय सरकार के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार पूरे देश में हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं, खासकर कन्नड़ के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है। मुख्यमंत्री ने कन्नड़ लोगों से अपील की कि वे कन्नड़ बोलने और सिखाने की जिम्मेदारी लें और इस समृद्ध भाषा को बचाने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हम सभी को हिंदी के अनावश्यक प्रसार का विरोध करना चाहिए और अपनी मातृभाषा कन्नड़ को सम्मान और संरक्षण देना चाहिए।

इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह राज्य के धन और करों के वितरण में भेदभाव कर रहा है। सिद्धारमैया के अनुसार, कर्नाटका राज्य ने 4.5 लाख करोड़ रुपये के कर एकत्र किए हैं, जबकि केंद्र सरकार ने केवल 55,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, जिससे राज्य के विकास कार्यों को प्रभावित किया गया है। उन्होंने केंद्र की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार आम आदमी पर कर का बोझ बढ़ा रही है, जबकि बड़ी कंपनियों को करों में रियायतें दी जा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप लोगों की क्रय शक्ति घट गई है और इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकार को पांच नई गारंटी देने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

सिद्धारमैया ने इसे भी स्पष्ट किया कि इस तरह के वित्तीय भेदभाव और नीति के कारण ही राज्य सरकार को ऐसी गारंटियों को पेश करना पड़ा, जिससे राज्य के नागरिकों को कुछ राहत मिल सके। उन्होंने राज्य के नागरिकों से अपील की कि वे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें और ऐसे मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाएं जो उनके हक को प्रभावित कर सकते हैं।

इसके साथ ही, एक अलग मुद्दे पर भी चर्चा हुई जहां अदालत ने एक याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया। याचिकाकर्ता एमएलसी था और उसकी गिरफ्तारी को लेकर अदालत ने यह सवाल पूछा कि क्या इसे सीधे गिरफ्तारी का कारण था, जब इस मामले में पहले से कोई प्रमुख आंकड़े या स्पष्ट प्रमाण नहीं थे। वरिष्ठ अधिवक्ता संदेश चौटा ने अदालत में तर्क किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं थी, इसलिए उसकी गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के आधार पर याचिकाकर्ता को रिहा करने का निर्देश दिया जा सकता है।

इस याचिका में राज्य के लोक अभियोजक बेलियप्पा बीए ने तर्क दिया कि आरोपी की जमानत याचिका विशेष अदालत में लंबित थी और इस संबंध में कोई और निर्णय नहीं आया था। हालांकि, अदालत ने यह टिप्पणियां कीं कि क्या सीधे गिरफ्तारी का कदम उठाना उचित था, विशेषत: जब अपराध के लिए अधिकतम चार साल की सजा का प्रावधान है। इससे यह मामला न्यायिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से अहम बन गया है, जिससे यह तय करना बाकी है कि गिरफ्तारी के आधार क्या वाजिब थे और क्या आरोपी को जल्दी रिहा किया जाना चाहिए।

यह घटनाएँ राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में ध्यान देने योग्य मुद्दे हैं, और नागरिकों, कानूनी अधिकारियों और शासन द्वारा समय रहते उचित निर्णय लेने की आवश्यकता है ताकि न्याय व्यवस्था पारदर्शी और प्रभावी बनी रहे।