“सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रिया चक्रवर्ती को मिली राहत, सीबीआई और सरकार को लगाई फटकार”

नई दिल्ली:  सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में न्यायिक प्रक्रिया ने एक बार फिर सभी का ध्यान आकर्षित किया है, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीबीआई द्वारा जारी लुकआउट सर्कुलर को रद्द कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय का समर्थन किया। 2020 में अभिनेता की अचानक और रहस्यमय मौत ने पूरे देश में शोक और सवालों का दौर शुरू कर दिया। सुशांत के परिवार ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई, जिसके बाद जांच सीबीआई को सौंपी गई, जिससे पूरे मामले को एक नई दिशा मिली।

सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती, उनके भाई शोविक, पिता लेफ्टिनेंट कर्नल इंद्रजीत चक्रवर्ती और मां संध्या चक्रवर्ती के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया, ताकि इन व्यक्तियों को देश छोड़ने से रोका जा सके। लेकिन जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस सर्कुलर को रद्द करते हुए कहा कि रिया और उनका परिवार जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं, तब यह एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि रिया एक सामाजिक व्यक्ति हैं और उन्हें उचित कानूनी प्रक्रिया का सम्मान मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखते हुए इस बात को रेखांकित किया कि जानी-मानी शख्सियतों के मामलों में न्यायपालिका का दबाव कैसे उभर सकता है। इस दौरान रिया चक्रवर्ती पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने सुशांत के बैंक खाते से कथित तौर पर 15 करोड़ रुपये का हेरफेर किया, जिसके कारण उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित किया गया।

इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की भी जांच चल रही है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय ने रिया के वित्तीय लेनदेन, निवेश और पेशेवर संबंधों की पड़ताल की। इस सबने न केवल बॉलीवुड बल्कि समस्त देश में मानसिक स्वास्थ्य, मीडिया ट्रायल और न्याय के मुद्दों पर गहरा चर्चा उत्पन्न की।

यह मामला न्यायपालिका की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बनाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि कानून का अनुप्रयोग सभी के लिए समान हो, चाहे मामला कितना ही हाई-प्रोफाइल क्यों न हो। यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि कैसे न्यायिक प्रक्रिया पर सार्वजनिक दबाव पड़ सकता है, विशेषकर जब मामला उन लोगों से जुड़ा हो जो समाज में विशेष स्थान रखते हैं।

सामाजिक न्याय और न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए यह घटना न केवल एक सबक है, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के प्रति सतर्कता बरतने की भी आवश्यकता को उजागर करती है। सुशांत की मौत के बाद की इस राजनीतिक और कानूनी जटिलता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्याय का मार्ग कभी-कभी कितनी बाधाओं से भरा होता है।