तस्लीमा नसरीन, जो अपने विवादास्पद लेखन और बांग्लादेश में कट्टरपंथी धार्मिक मान्यताओं की आलोचना के लिए जानी जाती हैं, 1994 से निर्वासन में हैं। अपने लेखों, किताबों और सार्वजनिक बयानों के जरिए, उन्होंने महिला अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात रखी है। हालांकि, उनकी बेबाकी और ईमानदार विचारधारा के कारण उन्हें अपने देश में कट्टरपंथियों का विरोध झेलना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद से तस्लीमा नसरीन ने स्वीडन, अमेरिका और भारत में समय बिताया, लेकिन भारत में उन्हें सबसे अधिक स्थायित्व और सुरक्षा मिली है।
गृह मंत्रालय के इस निर्णय के बाद तस्लीमा नसरीन ने गृह मंत्री अमित शाह का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए धन्यवाद देते हुए कहा कि यह भारत की उदारता और सहिष्णुता का प्रतीक है कि वह उन्हें अपने यहां रहने की अनुमति दे रहा है। तस्लीमा ने भारतीय लोकतंत्र और यहां की सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत में उन्हें हमेशा से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा मिली है, जिसे वह बेहद सराहती हैं।
इस फैसले का उनके प्रशंसकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी स्वागत किया है। तस्लीमा नसरीन के लेखन ने दुनियाभर में महिला अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत की है। उनका निवास परमिट बढ़ाने का निर्णय भारत के उदार दृष्टिकोण और असहमतियों को सहने की उसकी परिपक्वता को भी दर्शाता है।
भारत में रहने के दौरान तस्लीमा नसरीन ने कई महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य किए हैं, जिनमें “लज्जा” जैसी पुस्तकें शामिल हैं, जो उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है। उनके लेखन ने समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने भारत में रहते हुए कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि भारत उनके लिए दूसरा घर बन गया है, और यहां के लोगों से उन्हें अपार स्नेह और समर्थन मिला है।
यह निर्णय न केवल तस्लीमा नसरीन के लिए राहतकारी है, बल्कि यह भारत की उन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। तस्लीमा नसरीन का मामला एक उदाहरण है कि कैसे एक देश निर्वासित लेखकों और विचारकों को न केवल आश्रय प्रदान कर सकता है, बल्कि उन्हें अपने विचारों और लेखन के जरिए समाज में योगदान देने का अवसर भी देता है।
इस घटनाक्रम के बाद, यह देखना दिलचस्प होगा कि तस्लीमा नसरीन अपने लेखन और समाजिक मुद्दों पर किस प्रकार आगे बढ़ती हैं, और कैसे वह भारत में अपने निवास के दौरान अपनी साहित्यिक यात्रा को नए आयाम देती हैं।