इस कदम का मुख्य उद्देश्य 2200 करोड़ रुपए के बड़े आबकारी घोटाले से जुड़े मामलों की पुनरावृत्ति को रोकना है, जिसमें एक संगठित सिंडिकेट की संलिप्तता सामने आई थी। ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) की जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि नोएडा की एक कंपनी, प्रिज्म होलोग्राफी, ने नकली होलोग्राम बनाकर सीधे डिस्टलरी में सप्लाई किया, जिससे उन बोतलों पर नकली होलोग्राम लगाकर उन्हें दुकानों पर बेचा गया। यह प्रक्रिया इतनी चतुराई से की गई कि अवैध शराब की बिक्री से प्राप्त धन सीधे सिंडिकेट के खजाने में जाता था।
ईओडब्ल्यू के अनुसार, 2019 से 2022 के बीच सरकारी दुकानों से नकली होलोग्राम का उपयोग करके अवैध शराब बेची गई, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ। जांच में यह भी सामने आया कि इस सिंडिकेट में आबकारी उपायुक्त, जिला अधिकारी और अन्य पुलिसकर्मी शामिल थे, जो इस अवैध गतिविधि को बढ़ावा दे रहे थे। मामले में मुख्य आरोपी अनवर ढेबर के फार्म हाउस से नकली होलोग्राम जब्त किए गए हैं, जो यह दर्शाता है कि इस अपराध की जड़ें कितनी गहरी थीं।
इस घोटाले में शामिल लोगों की गिरफ्तारी का सिलसिला भी जारी है। नोएडा की प्रिज्म कंपनी के मैनेजर दिलीप पांडे और उनके सहयोगियों अनुराग द्विवेदी, अमित सिंह और दीपक दुआरी को गिरफ्तार किया गया है और वे रायपुर जेल में बंद हैं। इसके अतिरिक्त, ईओडब्ल्यू ने इस मामले में तत्कालीन सचिव अरुणपति त्रिपाठी, कारोबारी अनवर ढेबर, त्रिलोक सिंह ढिल्लन और अरविंद सिंह के खिलाफ भी चार्जशीट पेश की है, जबकि सेवानिवृत्त आईएएस अनिल टुटेजा के खिलाफ जांच चल रही है, हालांकि उन्हें अभी तक आरोपी नहीं बनाया गया है।
इस नई सुरक्षा पहल से सरकार की मंशा स्पष्ट है कि वह न केवल अवैध शराब की बिक्री को नियंत्रित करना चाहती है, बल्कि साथ ही इस प्रकार के संगठित अपराधों पर भी अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठा रही है। आगामी समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि नए होलोग्राम प्रणाली का कार्यान्वयन किस हद तक प्रभावी होता है और इससे भ्रष्टाचार की कड़ी को तोड़ने में कितनी सफलता मिलती है।