मालेगांव बम ब्लास्ट मामला: 16 साल बाद भी न्याय का इंतजार, साध्वी प्रज्ञा के वकील ने किया बड़ा खुलासा
मालेगांव : महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले को अब 16 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी यह मामला न्यायालय में लंबित है। 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास बाइक में विस्फोट के परिणामस्वरूप 6 लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर एक मुख्य आरोपी हैं, जिनका नाम विवादों में रहा है।
हाल ही में, प्रज्ञा ठाकुर के वकील जेपी मिश्रा ने इस मामले में एक बड़ा दावा करते हुए कहा है कि मालेगांव धमाके के पीछे प्रतिबंधित संगठन ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ (SIMI) का हाथ हो सकता है। उन्होंने NIA की विशेष अदालत में यह तर्क प्रस्तुत किया कि स्थानीय लोगों ने विस्फोट के तुरंत बाद पुलिस को घटनास्थल पर पहुंचने से रोका था, जो कि पुलिस की एफआईआर में दर्ज है। मिश्रा का मानना है कि इस तरह के कदम असली आरोपियों को बचाने के लिए उठाए गए होंगे।
विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी के समक्ष मामले की अंतिम दलीलें पेश करते हुए, वकील ने उल्लेख किया कि जिस स्थान पर विस्फोट हुआ था, वह स्थान शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के कार्यालय के समीप था, जहां सिमी का कार्यालय भी स्थित था। यह जानकारी इस मामले को एक नया मोड़ देती है और संभावित रूप से जांच को दिशा दे सकती है।
इस मामले की शुरुआत में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (ATS) ने जांच की थी, लेकिन बाद में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को स्थानांतरित कर दिया गया। NIA ने यह दावा किया था कि घटना में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की थी। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों के बयान दर्ज किए हैं, जिनमें से 34 गवाह मुकर गए हैं।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के अलावा, मामले के अन्य आरोपियों में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और अजय राहिरकर शामिल हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान कई बार राजनीतिक और सामाजिक विवाद उत्पन्न हो चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस घटना का सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर गहरा प्रभाव है।
इस मामले की जटिलताएं और विभिन्न आरोपितों की गिरफ्तारी से एक बात स्पष्ट है: न्याय की प्रक्रिया में देरी और राजनीतिक दखल आम जनता के विश्वास को कम कर रहा है। भारतीय न्याय प्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि क्या 16 वर्षों बाद भी न्याय की प्राप्ति हो पाएगी, या फिर इस मामले में भी समय बीतने के साथ-साथ सच्चाई को छुपा दिया जाएगा।
