“मध्यप्रदेश में शिक्षा संकट: आदिवासी बच्चों की संघर्षगाथा, कलेक्ट्रेट में कलेक्टर की अनोखी पहल”

 शहडोल:  सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए स्कूलों और सड़कों का निर्माण शुरू किया है, ताकि बच्चों को शिक्षा और लोगों को सुरक्षित आवागमन मिल सके। हालाँकि, इस उद्देश्य को कुछ लापरवाह लोगों द्वारा बाधित किया जा रहा है। हालिया घटना मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के गोहपारू ब्लॉक से सामने आई है, जहाँ सड़क और पुलिया का अभाव स्थानीय आदिवासी समुदाय के बच्चों को गंभीर संकट में डाल रहा है।

गोहपारू के बुढानवाह घियारीटोला गाँव में स्थित स्कूलटोला के बीच एक कच्चा रास्ता है, जो हल्की बारिश में 4 से 5 फीट पानी में डूब जाता है। इस कारण, बच्चों को जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। पानी में डूबे रास्ते से गुजरते समय, ना केवल उनकी जान को खतरा रहता है, बल्कि उनके कपड़े और किताबें भी भीग जाती हैं। इस गंभीर समस्या के समाधान की गुहार स्थानीय छात्रों और ग्रामीणों ने कई बार शासन-प्रशासन से लगाई, लेकिन उनकी अपीलों का कोई परिणाम नहीं निकला।

अंततः, इस निराशा से आहत होकर, स्थानीय छात्रों ने 40 किलोमीटर की यात्रा तय की और जिला मुख्यालय शहडोल स्थित कलेक्ट्रेट पहुंचे। वहां उन्होंने कलेक्टर केदार सिंह से अपनी कठिनाइयों का विवरण दिया। कलेक्टर ने उनकी बात सुनने के बाद उन्हें न केवल प्यार से गले लगाया, बल्कि पहले उन्हें समोसा खिलाया। इसके बाद, उन्होंने एक निजी बस की व्यवस्था कर बच्चों को उनके घर तक पहुँचाया।

कलेक्टर केदार सिंह ने इस गंभीर मुद्दे को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों को सड़क और पुलिया की समस्या का समाधान करने के लिए निर्देश दिए हैं। यह घटना यह दर्शाती है कि स्थानीय प्रशासन के संवेदनशीलता और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का एक उदाहरण है। हालांकि, बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा की खातिर, यह आवश्यक है कि विकास की योजनाएं वास्तविकता में परिणत हों और बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए सुरक्षित वातावरण मिले।

इस कहानी ने न केवल आदिवासी समुदाय की समस्याओं को उजागर किया है, बल्कि यह भी बताता है कि जब आवाज उठाई जाती है, तो बदलाव संभव है। यह एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई हमेशा जारी रहनी चाहिए, और इस दिशा में समाज को एकजुट होकर काम करना चाहिए।