विकिरण प्रौद्योगिकी: भारत की खाद्य सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव
चिराग पासवान: भोजन केवल हमारी बुनियादी जरूरत नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक गतिविधियों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। त्योहारों, सामाजिक समारोहों, और पारंपरिक अनुष्ठानों में भोजन की भूमिका प्रमुख है। इसके अलावा, खाद्य उद्योग हमारे देश की आर्थिक प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रोजगार के अवसर पैदा करता है और ग्रामीण एवं कृषि विकास को बढ़ावा देता है। भारत जैसे विशाल कृषि प्रधान देश में, खाद्य सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो गया है, खासकर जब हम “विकसित भारत” के सपने की ओर बढ़ रहे हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त, पौष्टिक और सुरक्षित भोजन मिल सके।
खाद्य सुरक्षा केवल खाना उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें यह भी सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाला भोजन संदूषित न हो और उसकी बर्बादी को रोका जा सके। फलों और सब्जियों जैसे जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम करना इसलिए जरूरी है ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में सुधार हो सके। भारत में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए खाद्य सुरक्षा नियमों का पालन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कई विकसित देशों में आयातित खाद्य पदार्थों पर कड़े नियम लागू होते हैं, और इन नियमों का उल्लंघन आर्थिक नुकसान, उपभोक्ता विश्वास में कमी और खाद्य आपूर्ति में व्यवधान का कारण बन सकता है।
खाद्य सुरक्षा और संरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार ने 2024-25 के बजट में एमएसएमई क्षेत्र में 50 बहु-उत्पाद खाद्य विकिरण इकाइयों की स्थापना के लिए धन आवंटित किया है। खाद्य विकिरण एक महत्वपूर्ण तकनीक है, जो कृषि खाद्य उत्पादों की शेल्फ लाइफ को बढ़ाती है और उन्हें सुरक्षित रखती है। इस प्रक्रिया में खाद्य पदार्थों को नियंत्रित वातावरण में आयनकारी विकिरण के संपर्क में लाया जाता है, जिससे हानिकारक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। यह पद्धति भोजन को खराब होने से बचाने और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करती है, जिससे खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में नुकसान कम होता है।
यद्यपि खाद्य विकिरण की अवधारणा नई नहीं है, लेकिन आधुनिक दौर में इसकी प्रासंगिकता बढ़ गई है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग द्वारा वैश्विक मानकों की स्थापना के बाद खाद्य विकिरण की ओर ध्यान बढ़ा है। इसे विशेष रूप से अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और अन्य देशों में अपनाया जा रहा है, जहां घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों में इसका उपयोग किया जा रहा है। भारत ने भी इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है और देश भर में 34 विकिरण प्रसंस्करण सुविधाएं स्थापित की हैं। हालांकि, इन सुविधाओं की संख्या और वितरण को और बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि हमारे विशाल कृषि खाद्य बाजार की मांगों को पूरा किया जा सके।
खाद्य विकिरण इकाइयों की स्थापना में उच्च पूंजीगत लागत एक चुनौती है। एक सुविधा स्थापित करने में 25 से 30 करोड़ रुपये का निवेश होता है, जिसमें भूमि और बुनियादी ढांचे की लागत शामिल नहीं होती। हालांकि, इन सुविधाओं में निवेश करने से दीर्घकालिक लाभ मिलता है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा बढ़ती है और निर्यात बाजारों के लिए अवसर खुलते हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई) इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रति परियोजना 10 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है, ताकि जल्दी खराब होने वाले उत्पादों को संरक्षित किया जा सके और उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाई जा सके।
खाद्य विकिरण की प्रौद्योगिकी केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का साधन नहीं है, बल्कि यह भारतीय खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की दीर्घकालिक स्थिरता और टिकाऊ विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। इससे न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिलेगा, बल्कि हमारे किसानों को भी उनके उत्पादों के लिए बेहतर दाम मिल सकेंगे।
भारत के खाद्य उद्योग में सुधार के इस अवसर का लाभ उठाएं और इस क्षेत्र में निवेश करके आप न केवल आर्थिक विकास में सहयोग करेंगे, बल्कि एक सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य की दिशा में भी कदम बढ़ाएंगे।
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