HomeNATIONALCHHATTISGARHमध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के आपसी खींचतान से दोनों राज्यों के 6...

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के आपसी खींचतान से दोनों राज्यों के 6 लाख पेंशनर दुखी : वीरेंद्र नामदेव

रायपुर। भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि पेंशनरों को केन्द्र के समान बकाया 14 प्रतिशत महंगाई राहत देने के लिए मध्यप्रदेश कैबिनेट के निर्णय से छत्तीसगढ़ सरकार के असहमत होने और इस मामले पर दोनों सरकारों के बीच हो रही आपसी खींचतान से दोनों राज्यों के 6 लाख पेंशनर दुखी हैं। इसमें 1 लाख पेंशनर छत्तीसगढ़ के शामिल हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओर से ट्यूटर में कर्मचारियों को 5 प्रतिशत महंगाई भत्ता देने की घोषणा के बाद 2 मई को जारी आदेश में पेंशनर्स महंगाई राहत देने का कोई उल्लेख नहीं हैं।
जारी विज्ञप्ति में पेन्शनर फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव एवं फेडरेशन के घटक संगठन के क्रमशः छत्तीसगढ़ पेन्शनर कल्याण संघ डॉ डी पी मनहर, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील पेन्शनर कल्याण संघ के प्रांताध्यक्ष आर पी शर्मा, भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ छत्तीसगढ़ प्रदेश के अध्यक्ष जयप्रकाश मिश्रा,पेन्शनर एसोसिएशन के गंगाप्रसाद साहू,यशवन्त देवान और पेन्शनर समाज के ओपी भट्ट बताया है कि देश में अकेले छत्तीसगढ़ राज्य में पेंशनरों को सबसे कम महंगाई भत्ता मिल रहा है। ऐसा भी पहलीबार हुआ है, जब ट्यूटर के माध्यम से मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को महंगाई भत्ता देने की जानकारी दी है।
पेंशनरों के बारे में कोई घोषणा नहीं की और यह भूपेश सरकार के कार्यकाल में ऐसा दूसरी बार हो रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार के इस रवैये से छत्तीसगढ़ राज्य के पेंशनरों में घोर निराशा है।
राज्य के पेंशनरों की समस्या को लेकर छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने दोनों राज्यों के ब्यूरोक्रेसी पर आरोप लगाया है कि पेंशनरों के मामले में आपसी सहमति की अनिवार्यता के लिए दोनों सरकारों पर आर्थिक निर्भरता के लिए ब्यूरोक्रेसी की निष्क्रियता और लापरवाही ही पूरी तरह जिम्मेदार है। बीते 21 वर्षों में मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) को विलोपित कराने में दोनों राज्य सरकारों ने रुचि नहीं ली, जिसका खामियाजा दोनों राज्यों के पेंशनर भुगत रहे हैं। यह भी अविश्वसनीय है कि नियमों में ऐसी बाध्यता बताया जाता है कि इस मामले पर दोनों राज्य सरकार के कैबिनेट भी असहाय है। मगर इसके बाद भी दोनों राज्य सरकार को इस विषय पर समाधान की कोई चिंता आज तक देखने में नहीं आई है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments